परिषदीय स्कूलों में वितरित किए जा रहे यूनिफॉर्म की गुणवत्ता खराब होने की
बात अधिकारियों तक पहुंच गई है। जूते - मोजे की आपूर्ति तो शासन स्तर से हो रही है
इसलिए उस पर अफसर नहीं बोल रहे हैं लेकिन स्थानीय स्तर से खरीदारी होने की वजह से
यूनिफॉर्म की गुणवत्ता पर अब सभी ध्यान दे रहे हैं। स्कूल के प्रधानाध्यापकों को
चेतावनी दी गई है कि खराब कपड़े की वजह से यूनिफॉर्म बदलने की नौबत आई तो उन्हें
खुद पैसे लगाने होंगे।
रविवार के अंक में दैनिक जागरण ने विद्यार्थियों को मिले सरकारी मोजे तीन
दिन में ही फटने की खबर प्रकाशित की है। बीएसए संजय कुशवाहा ने बताया कि बीइओ (खंड
शिक्षा अधिकारी) के जरिए मोजों की गुणवत्ता की रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी क्योंकि
इसके टेंडर और आपूर्ति शासन स्तर से हो रही है। अलबत्ता यूनिफॉर्म की गुणवत्ता
खराब होने की मिल रही जानकारी को गंभीरता से लिया गया है।
गुणवत्ता परखने के लिए गठित जिला स्तरीय समिति में शामिल टेक्सटाइल्स
इंजीनियर ने आठ ब्लाक के अलावा शहर के कई स्कूलों में भी जाकर यूनिफॉर्म के कपड़ों
का नमूना लिया है जिसे जांच के लिए भेजा गया है। सूत्रों के मुताबिक, टेक्सटाइल्स
इंजीनियर ने कपड़े का नमूना जलाकर देखा और अपने अनुभव से कहा कि कपड़े मानक के
अनुसार नहीं है। खंड शिक्षा अधिकारी (नगर क्षेत्र) ज्योति शुक्ला ने बताया कि
उन्होंने सभी प्रधानाध्यापकों को संदेश भेज दिया है कि यूनिफॉर्म की खरीद में
कपड़े का मानक शासनादेश के अनुसार रहना चाहिए। अगर इसमें लापरवाही की गई और
यूनिफॉर्म बदलने की नौबत आई तो फिर प्रधानाध्यापक जिम्मेदार होंगे और उन्हें नए
यूनिफॉर्म अपने पैसे से खरीदकर देने पड़ सकते हैं।