अनुभवी एनजीओ बच्चों को बांटेंगे मिड-डे-मील
मिड-डे-मील के नाम पर होने वाली धांधली पर लगाम लगाने के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं को काम देने के लिए नीति बदले की तैयारी है। नई नीति में ऐसा प्रावधान किया जा रहा है कि मिड-डे-मील को बांटने की जिम्मेदारी अनुभवी संस्थाओं को दी जाए। इससे छोटे एनजीओ अपने-आप बाहर हो जाएंगे।
बेसिक शिक्षा परिषद से संचालित स्कूलों व माध्यमिक शिक्षा परिषद से संबद्ध प्राइमरी स्कूलों में बच्चों को मिड-डे-मील योजना में खाना दिया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में रसोइया रखकर खाना बनवाया जाता है और शहरी क्षेत्रों में स्वयंसेवी संस्थाओं से खाना बंटवाया जा रहा है। स्थिति यह है कि शहरी व ग्रामीण क्षेत्र के अधिकतर स्कूलों में खाना नहीं मिल पा रहा। कुछ संस्थाओं पर घटिया खाना देने का आरोप है। इसलिए मध्याह्न भोजन प्राधिकरण चाहता है कि मिड-डे-मील योजना से छोटी संस्थाओं को हटाकर बड़ी संस्थाओं को जिम्मेदारी दी जाए।
प्रस्ताव के मुताबिक बड़ी संस्था से पहली बार तीन साल के लिए अनुबंध होगा और उत्कृष्ट कार्य पर प्रत्येक एक वर्ष का नवीनीकरण होगा। संस्था केंद्रीय भोजनालय का निर्माण कराएगी और इंफ्रास्ट्रक्चर, खाना बनाने के लिए मशीन, वितरण को वैन, गाड़ी की व्यवस्था स्वयं करेगी। संस्था धार्मिक, जातीय या वर्ग आधारित भेदभाव नहीं करेगी। योजना के लिए दी गई राशि और खाद्यान्न का इस्तेमाल किसी अन्य योजना पर नहीं किया जा सकेगा। साथ ही मांगी जाने वाली सूचनाएं देनी होंगी। खाद्यान्न और कन्वर्जन कास्ट का ब्यौरा रखना होगा। संस्था को विधिवत अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर करने होंगे, इससे नियम विरुद्ध काम करने पर कार्रवाई की जाएगी।
साभार अमरउजाला