Sunday, December 8, 2013


शिक्षा की ज्योति फैलाते प्रकाश
नवभारत टाइम्स | Dec 6, 2013, 10.00AM IST

ईशा निगम
फिल्म 'तारे जमीन पर' तो आपको याद होगी जिसमें आमिर खान अपने खास स्टाइल में ईशान नाम के स्टूडेंट को पढ़ना-लिखना सीखाते हैं। ईशान को डिस्लेक्सिया (शब्द समझ में ना आना) नाम की बीमारी थी जिससे वह बाकी बच्चों के मुकाबले चीजों को जल्दी नहीं पढ़ पाता था। ऐसे स्टूडेंट्स को अक्सर कई टीचर्स भी पागल बताते हैं। लेकिन ऐसे कुछ खास स्टूडेंट्स को ठाकुरगंज मुसाहबगंज में रहने वाले ज्योति प्रकाश ने अपने मैथ्ड्स से पढना-लिखना सिखाया। पेशे से टीचर ज्योति प्रकाश कमजोर और आर्थिक रूप से गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ाते हैं। यहां तक की उनके पास 15-20 किमी. दूर से भी बच्चे पढ़ने आते हैं। उनका एक स्टूडेंट को 'मैथ्स फीवर' था। इस वजह से वह बाकी सब्जेक्ट्स में भी कमजोर हो रहा था। लेकिन ज्योति सर की टीचिंग मेडिसिन से वो न सिर्फ मैथ्स में पास हुआ बल्कि उसे मैथ्स इंट्रस्टिंग लगने लगा। वक्त के साथ ज्योति सर ने अपना पैटर्न में बदलाव किया। उन्होंने अपने स्टूडेंट्स में इंग्लिश की नींव मजबूत की। उनके कई स्टूडेंट्स अच्छी कंपनियों में जॉब कर रहे हैं।
ज्योति बताते हैं कि एक 10 साल का स्टूडेंट शब्दों को भी समझ नहीं पाता था। वह कुर्सी को जर्सी और एपल को संतरा कहता था। सभी उसे या तो फिसड्डी कहते या पागल, लेकिन उनकी क्लास में आकर उसने पढ़ाई में दिलचस्पी ली साथ ही उसमें आए बदलाव से हर कोई हैरान है। कुछ ऐसा ही हाल इंदिरा नगर की स्टूडेंट का था जिसके ट्यूटर एक फेमस कॉलेज के प्रफेसर थे। वह उसे मैथ्स का एक सवाल कई तरीकों के समझाकर चले गए लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आया। यह देखकर ज्योति सर ने उसे सिर्फ दो मिनट में वह सवाल मुंह जबानी समझा दिया और वह लड़की पूछने पर तुरंत जवाब देने लगी। ज्योति प्रकाश हमेशा अपने स्टूडेंट्स की हौसलाअफजाई करते हैं ताकि उनका मोरल कभी कमजोर ना पड़े। उनकी क्लास में ढाई तीन साल के बच्चे भी स्कूल से पहले एडमिशन ले लेते हैं। हालांकि ज्योति प्रकाश संसाधनों की कमी के चलते ज्यादा स्टूडेंट्स को एडमिशन नहीं देते। उनका कहना है कि छोटी क्लास में बच्चे का बेस मजबूत करना ज्यादा जरूरी है। इस काम में उनकी पत्नी व बेटी भी उनका साथ देते हैं। उन्हें स्कूल खोलने के कई ऑफर्स भी मिले लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। उनके इसी प्रयास से कई बच्चों का जीवन सुधरा है।
ज्योति में बचपन से ही टैलेंट था। फौज में सेलेक्ट हो गए पर पिता के कहने पर इरादा बदल दिया। कराटे सीखकर फिल्मों में एक्टिंग भी की। 'अंधा युग' फिल्म रिलीज होने के बाद मुंबई से कई ऑफर्स भी आए, पर गये नहीं । टीवी की एेजेन्सी से लेकर बिजनेस में भी हाथ आजमाया जिसमें पैसा तो था पर आत्मसंतोष नहीं। इसके बाद उन्होंने स्टूडेंट्स को मुफ्त पढ़ाने का फैसला किया। उनका मानना है कि इससे उन्हें सबसे ज्यादा खुशी मिलती है। आजीविका का साधन होने के बावजूद भी वे गरीब परिवार के बच्चों को पढ़ाने के लिए कभी मना नहीं करते। सभी पढ़े सभी बढ़े यही उनका लक्ष्य है।