स्कूल
चलो अभियान के तहत विद्यालयों में नामांकन और उपस्थिति बढ़ाने नें शिक्षकों के
पसीने छूट जा रहे हैं। कारण यह है कि कई अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज
रहे हैं। वे गेहूं की कटाई-मड़ाई के लिए उनकी मदद ले रहे हैं या उनसे घर की रखवाली
कर रहा हैं। इससे स्कूलों की उपस्थिति प्रभावित हो रही है।
शिक्षकों के मुताबिक सरकारी
स्कूलों में जिन तबको के बच्चे पढ़ते हैं उनमें से कई के अभिभावक पूरी तरह कृषि पर
आधारित हैं। पन्द्रह अप्रैल से 15 मई के
बीच का समय उनके लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। अधिकतर अभिभावक गेहूं की कटाई-मड़ाई
में लग जाते हैं। पूरा परिवार उनकी मदद करता है। आराजी लाइन ब्लाक के प्राथमिक
विद्यालय सिहोरवा दक्षिणी बुधवार को 158 में 101 और प्राथमिक विद्यालय जक्खिनी में 101 में 59 बच्चे मिले। सिहोरवा के प्रधानाध्यापक जयकुमार सिंह ने बताया कि
बच्चों के अभिभावक कटाई-मड़ाई कर रहे हैं। कुछ बच्चे उनके साथ लगे हैं और कुछ घर
पर छोटे भाई-बहनों की देखभाल कर रहे हैं। प्राथमिक विद्यालय जक्खिनी की
प्रधानाध्यापिका सुशीला कुमार बताती हैं कि जब अभिभावकों को समझाया-बुझाया
जाता है तो वह कहते हैं कि कुछ दिन की बात है। बच्चे बाद में स्कूल जाएंगे।
अभिभावकों को समझाने का कोई असर नहीं पड़ रहा है।
चोलापुर ब्लाक के स्कूलों की भी
यही स्थिति है। प्राथमिक विद्यालय महदा के शिक्षक मुमताज रहमत अली, भदवा के लालजी प्रसाद, लश्करपुर
रे रामप्रताप आदि ने बताया है कि स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति कम है। पहला कारण
है कि गर्मी तेज पड़ने लगी है। दूसरा, कई
बच्चों के अभिभावक खेती-किसानी के काम में लगे हुए हैं। वे अपने साथ मदद के लिए
बच्चों को भी ले जा रहे हैं।
पिंडरा ब्लाक में प्राथमिक
विद्यालय (जमापुर) के शिक्षक अरविंद वर्मा और दिनेश वर्मा स्कूल चलो अभियान के तहत
मूसहर बस्ती में भ्रमण करते हुए मिले। उन्होंने बताया इस बस्ती से एक दर्जन बच्चों
को दाखिला स्कूल में हुआ है लेकिन उपस्थिति शून्य है। पूछने पर कुछ अभिभावकों ने
बताया कि वे बच्चे मां के साथ रिश्तेदारी में चले गए हैं। कुछ ने बताया कि
ईंट-भट्ठा पर काम करने गए हैं।
यहीं पर खेतों में काम करते
मिले किशन, रोहित, आरती और रंजू के अभिभावकों से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि
उनके लिए अभी पढ़ाई से ज्यादा जरूरी खेत में काम करना है। पढ़ने के लिए काफी समय
है।
शिक्षकों का कहना है कि एक तरफ
स्कूल चलो अभियान के तहत नामांकन बढ़ाने के लिए दबाव है, दूसरी ओर कतिपय अभिभावक ऐसे हैं जो बच्चों से घर-गृहस्थी और
खेती का काम करा रहे हैं। माता-पिता के कहने पर गेहूं की बाली बीनने में व्यस्त
हैं। यह स्थिति एक गांव या एक विद्यालय की नहीं बल्कि पूरे जिले की है। जिससे
स्कूल चलो अभियान का लक्ष्य पूरा करने में दिक्कत आ रही है।
जुलाई से शुरू होना चाहिए सत्र
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के प्रादेशिक सचिव डॉ.जगदीश सिंह दीक्षित कहना है अप्रैल में ही सत्र शुरू करने से समस्या बढ़ गई है। पहले जुलाई में सत्र चलता था। गर्मी में बच्चे खाली रहते थे। माता-पिता के सामने दिक्कत नहीं थी।
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के प्रादेशिक सचिव डॉ.जगदीश सिंह दीक्षित कहना है अप्रैल में ही सत्र शुरू करने से समस्या बढ़ गई है। पहले जुलाई में सत्र चलता था। गर्मी में बच्चे खाली रहते थे। माता-पिता के सामने दिक्कत नहीं थी।
'कुछ व्यवहारिक दिक्कत है लेकिन स्कूल
चलो अभियान पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। पिछेले साल की तुलना में स्कूलों में
नामांकन बढ़ा है। बच्चों की उपस्थिति बढ़ी है। अभिभावकों को प्रेरित किया जा रहा
है'
बीबी चौधरी, बीएसए
बीबी चौधरी, बीएसए
जिले में सराकारी प्राइमरी
स्कूलों
की संख्या-1154
इन विद्यालयों ने पढ़ने वाले बच्चों की संख्या- 1.10 लाख
इन विद्यालयों ने पढ़ने वाले बच्चों की संख्या- 1.10 लाख