उत्तर
प्रदेश में 3 साल में नहीं खुला एक भी प्राइमरी
स्कूल
स्कूल
में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, मगर स्कूलों की संख्या
कई सालों से नहीं बढ़ रही। केंद्र सरकार सर्व शिक्षा अभियान और माध्यमिक शिक्षा
अभियान में पिछले तीन-चार साल से खुलने वाले नए स्कूलों की संख्या नाम मात्र है।
यूपी, बिहार
व दिल्ली में तो पिछले तीन साल से कोई नया प्राथमिक स्कूल ही नहीं खुला। उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर में भी
नए स्कूलों की तादाद बेहद कम है।
सर्व
शिक्षा अभियान के तहत उत्तर प्रदेश में पिछले तीन साल से कोई नया स्कूल नहीं खुला।
इस योजना के तहत केंद्र की ओर से राज्य को पिछले तीन साल में करीब 11 लाख रुपये की राशि
मिली है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत केंद्र सरकार 65 फीसदी राशि देता है
जबकि 35 फीसदी
राज्य को खर्च करना पड़ता है। यूपी सरकार इस फंड को बेहद कम बताते हुए केंद्र
सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाती रही है। प्रदेश में तीन साल में सिर्फ 224 माध्यमिक विद्यालय
खुले हैं। यही हाल दिल्ली और बिहार का भी है। वहीं हरियाणा में पिछले साल कोई
प्राथमिक विद्यालय नहीं खुला जबकि पिछले चार साल में 80 के करीब प्राथमिक
विद्यालय खुले हैं। यहां पिछले चार सालों में 21 माध्यमिक विद्यालय ही
खुले हैं। पंजाब में पिछले तीन साल में 60 से कुछ ज्यादा स्कूल
खुले हैं। इसमें 54 माध्यमिक
विद्यालय हैं। वहीं जम्मू और कश्मीर में तीन साल में 67 स्कूल खुले हैं।
हिमाचल प्रदेश में पिछले तीन साल में सिर्फ 9 स्कूल खुले हैं। उत्तराखंड
में पिछले तीन साल में 83 प्राथमिक
और 43 माध्यमिक
स्कूल ही खुले हैं। सर्व शिक्षा अभियान केंद्र और राज्यों की आपसी खींचतान की भेंट
चढ़ गई है। राज्य केंद्र पर कम पैसे देने का आरोप लगा रहे हैं जबकि केंद्र का कहना
है कि यह पर्याप्त रकम है। राज्य आवंटित राशि का सदुपयोग नहीं कर रहे।
शिक्षा
सुधारों की गति पर लगा ब्रेक
शिक्षा
सुधारों की गति पर फिलहाल ब्रेक लग गया है। नई शिक्षा नीति को अंतिम रूप देने के
लिए मानव संसाधन मंत्रालय लोगों से राय ले रहा है। हालांकि स्कूली शिक्षा से लेकर
उच्च शिक्षा में बड़े सुधारों के प्रस्ताव ठंडे बस्ते में हैं। अगले हफ्ते से शुरू
होने वाले संसद के बजट सत्र में सरकार आईआईएम और नेशनल एकेडेमिक डिपोसिटरी विधेयक
लाने जा रही है। विद्यार्थियों को आठवीं तक हर हाल में पास किए जाने संबंधी नियम
को हटाने की सिफारिश हो या फिर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में समान प्रवेश परीक्षा
और समान पाठ्यक्रम के प्रस्ताव दोनों पर कोई फैसला नहीं हो पाया है। मार्च में
केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की बैठक होनी है। इसमें शिक्षा सुधार को लेकर कई
मुददें के हल होने की उम्मीद है। सरकार आगामी बजट में केजी से पीजी तक एक मॉडल पर
काम करने का ऐलान कर सकती है। इसके तहत छात्रों को एक ही संस्थान में केजी से लेकर
पोस्ट ग्रेजुएट, पीएचडी
तक करने की सुविधा होगी। उसे स्कूली शिक्षा के बाद कहीं और भटकना नहीं पड़ेगा।
शिक्षा से जुड़े जानकार बताते हैं कि सरकार का यह प्रस्ताव अच्छा है लेकिन पुराने
प्रस्तावों को लेकर भ्रम की स्थिति बरकरार है। शिक्षा के अधिकार में बदलाव को लेकर
गीता भुक्कल कमेटी ने सिफारिश की थी। शिक्षा के अधिकार के तहत आठवीं तक बच्चों को
फेल करने पर प्रतिबंध लगाया गया था।
समिति
ने इसे हटाने की सिफारिश की थी। इसे लेकर मंत्रालय ने कोई फैसला नहीं लिया है। साथ
ही दसवीं बोर्ड को फिर से लागू करने को लेकर भी विचार हो रहा है। कैब की बैठक में
भी इस पर विचार-विमर्श किया जाएगा।
नई
नीति में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में समान प्रवेश परीक्षा जैसे मुद्दे विचाराधीन
नई
शिक्षा नीति को अंतिम रूप देने को मानव संसाधन मंत्रालय ले रहा मशविरा
साभार अमरउजाला