प्रयागराज: हाईकोर्ट ने कहा है कि मृतक आश्रित सेवा नियमावली के तहत
न्यूनतम अर्हता में छूट देने का प्रावधान है। प्राइवेट संस्थाएं भी मृतक आश्रित को
समायोजित करने से इंकार नहीं कर सकती हैं। कोर्ट ने व्यर्थ की मुकदमेबाजी में
उलझाकर मृतक आश्रित बृजेश गोपाल को परेशान करने पर रमाकांत सेवा संस्थान कन्या
विद्यालय, वाराणसी पर 50 हजार रुपये का
हर्जाना लगाया है। हर्जाने की राशि का भुगतान आश्रित बृजेश गोपाल खलीफा को करने का
आदेश दिया है।
विद्यालय
प्रबंध समिति की याचिका पर मुख्य न्यायमूर्ति गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति एसएस
शमशेरी की खंडपीठ ने सुनवाई की। पीठ का कहना था कि हाईकोर्ट की खंडपीठ ने पहले ही
प्रबंध समिति को मृतक आश्रित को नियुक्ति देने का आदेश दे दिया था। इसके बाद
प्रबंध समिति ने फिर से एकलपीठ में याचिका दाखिल कर दी और उसके खारिज होने पर
विशेष अपील में चुनौती भी दे दी। ऐसा करके प्रबंध समिति ने न्यायिक प्रक्रिया का
दुरुपयोग किया है।
मामले के अनुसार बृजेश गोपाल को 14 जुलाई 2015 को बेसिक शिक्षा अधिकारी ने नियुक्ति आदेश दिया। मगर उसे ज्वाइनिंग नहीं दी गई। दुबारा बीएसए ने उसे शिवकरण सिंह गौतम उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भदैनी में लिपिक के पद पर नियुक्ति दी। वहां भी उसे ज्वाइन नहीं कराया गया। आश्रित ने कोर्ट की शरण ली और कई दौर की मुकदमेबाजी के बाद अदालत ने दो बार सहायक बेसिक शिक्षा निदेशक को उसे ज्वाइन कराने का निर्देश दिया। इसके बावजूद आश्रित को किसी विद्यालय में ज्वाइनिंग नहीं दी गई। रमाकांत सेवा संस्थान की प्रबंध समिति ने भी ज्वाइनिंग न देकर हाईकोर्ट मेें याचिका दाखिल कर दी और फिर विशेष अपील भी दाखिल की। कोर्ट का कहना था कि मृतक आश्रित को तत्काल नियुक्ति देने की आवश्यकता होती है। ऐसा न करके उसे बेवजह परेशान किया गया।
मामले के अनुसार बृजेश गोपाल को 14 जुलाई 2015 को बेसिक शिक्षा अधिकारी ने नियुक्ति आदेश दिया। मगर उसे ज्वाइनिंग नहीं दी गई। दुबारा बीएसए ने उसे शिवकरण सिंह गौतम उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भदैनी में लिपिक के पद पर नियुक्ति दी। वहां भी उसे ज्वाइन नहीं कराया गया। आश्रित ने कोर्ट की शरण ली और कई दौर की मुकदमेबाजी के बाद अदालत ने दो बार सहायक बेसिक शिक्षा निदेशक को उसे ज्वाइन कराने का निर्देश दिया। इसके बावजूद आश्रित को किसी विद्यालय में ज्वाइनिंग नहीं दी गई। रमाकांत सेवा संस्थान की प्रबंध समिति ने भी ज्वाइनिंग न देकर हाईकोर्ट मेें याचिका दाखिल कर दी और फिर विशेष अपील भी दाखिल की। कोर्ट का कहना था कि मृतक आश्रित को तत्काल नियुक्ति देने की आवश्यकता होती है। ऐसा न करके उसे बेवजह परेशान किया गया।