नहीं कम होगा बस्ते का बोझ
पाठ्यपुस्तक नीति में नहीं किया गया कोई बदलाव
लखनऊ। प्रदेश के प्राइमरी व अपर प्राइमरी स्कूलों में बच्चों को समय पर मुफ्त किताबें तो मिल जाएंगी लेकिन बस्ते का बोझ इस साल भी कम नहीं होगा। शासन ने पाठ्यपुस्तक नीति में कोई बदलाव नहीं किया है। पिछले साल की नीति को ही ज्यों की त्यों लागू करने के निर्देश दिए गए हैं। वहीं समय पर नीति जारी होने से बच्चों को जुलाई से पहले किताबें मिलने की उम्मीद बढ़ गई है।
कक्षा एक से आठ तक के बच्चों को मिलने वाली मुफ्त किताबों में 2004 के बाद से कोई बदलाव नहीं किया गया है। पिछले तीन साल से बस्ते का बोझ कम करने के लिए किताबों में संशोधन की प्रक्रिया शुरू हुई थी। इसके लिए आम लोगों के साथ ही स्वयंसेवी संगठनों और शिक्षकों से भी सुझाव मांगे गए थे। ढेरों सुझाव आए भी, लेकिन इन सुझावों पर कोई अंतिम निर्णय नहीं हो पाया है। नई नीति में कुछ बदलाव की उम्मीद की जा रही थी लेकिन शासन ने निर्देश दिए हैं कि पिछले साल जिस तरह किताबें छपी थीं, उनमें किसी तरह का बदलाव न किया जाए।
इस साल लोकसभा चुनाव भी होने हैं। उम्मीद की जा रही है कि इसी महीने आचार संहिता लागू हो सकती है। ऐसे में सभी को इस बात की चिंता थी कि आचार संहिता लागू होने से पहले पाठ्यपुस्तक नीति जारी नहीं हुई तो किताबें समय पर छपना मुश्किल हो जाएंगी। नीति जारी होने केबाद अधिकारियों ने राहत की सांस ली है। अब समय पर बच्चों को किताबें मिल सकेंगी। किताबें छपने के लिए इसी हफ्ते तकनीकी बिड और उसके बाद 20 दिन में वित्तीय बिड हो जाएगी। इस तरह मार्च के पहले हफ्ते तक प्रकाशकों को किताबें छपने के ऑर्डर दे दिए जाएंगे। अप्रैल से जून तक का समय किताबों की छपाई से लेकर स्कूलों तक पहुंचाने के लिए मिल जाएगा।