Saturday, December 19, 2015

'मुफ्त' का भोजन नहीं चाहते हैं अभिभावक


 मुफ्त भोजन देकर बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रेरित करने की सरकार की परिकल्पना से देशवासियों का मोह खत्म होता जा रहा है। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक उन विद्यालयों में छात्रों के दाखिले में कमी आई हैं, जिनमें बच्चों को मिड डे मीलदिया जा रहा है, वहीं निजी स्कूलों में दाखिले बढ़े हैं।

शुक्रवार को मिड डे मीलयोजना पर भारत के नियंत्रक एवं लेखा परीक्षक यानी कैग द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में वह वर्ग बढ़ रहा है जो शिक्षा में बेहतर गुणवत्ता की चाह रखता है। यह वर्ग मुफ्त भोजन की बजाए शिक्षा को प्राथमिकता दे रहा है। 

वर्ष 2009-2010 में मिड डे मीलकी सुविधा वाले स्कूलों में जहां 14.69 करोड़ बच्चे थे, वहीं वर्ष 2013-2014 में यह संख्या घटकर 13.87 करोड़ रह गई। यानी करीब 5.58 फीसदी की गिरावट आई। वहीं इसके विपरीत निजी स्कूलों में इस दौरान बच्चों की संख्या 4.02 करोड़ से बढ़कर 5.53 करोड़ हो गई। 

यानी इनमें दाखिले में 38 फीसदी की वृद्धि हुई। साफ है कि मिड डे मीलके जरिए बच्चों को स्कूलों में बनाए रखना कारगर उपाय नहीं साबित हो रहा है। यह प्रवृत्ति दर्शाती है कि भोजन देने का उद्देश्य तभी पूरा होगा जब माता-पिता की अपने बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा की उम्मीदें भी पूरी हो। 

कैग ने गिनाई योजना की खामियां


रिपोर्ट के मुताबिक, ‘मिड डे मीलके क्रियान्वयन में कमी और त्रुटि है। आंकड़े त्रुटिपूर्ण हैं। योजना का लाभ उठाने वाले बच्चों की संख्या के उपलब्ध आंकड़े और निगरानी संस्थानों के आंकड़े अलग-अलग हैं। निगरानी संस्थाओं ने सैंपल स्कूलों के जरिए आंकड़े इकट्ठा किए हैं। 

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की ओर से इस योजना के लिए खराब गुणवत्ता वाले चावल दिए जा रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि इस योजना के तहत बच्चों की चिकित्सा जांच जरूरी है लेकिन पर्याप्त संख्या में यह जांच नहीं हुई। 

जिस कारण मिड डे मीलका पोषण स्थिति पर पड़ने वाले प्रभावों और बच्चों के लिए जरूरी अपेक्षित पूरक सूक्ष्म पोषण के प्रभाव का पता नहीं लगाया जा सका। 
साभार अमरउजाला