Wednesday, October 30, 2019

महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती


महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती 
जन्म 12 फरवरी 1824

मृत्यु 30 अक्टूबर 1883

 स्वामी दयानन्द सरस्वती आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक व देशभक्त थे। उनका बचपन का नाम 'मूलशंकरथा।
वे महान ईश्वर भक्त थे, उन्होंने मुंबई में एक [समाज]] सुधारक संगठन - आर्य समाज की स्थापना की। वे एक संन्यासी तथा एक महान चिंतक थे। उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। वेदों की ओर लौटो यह उनका प्रमुख नारा था। स्वामी दयानंद जी ने वेदों का भाष्य किया इसलिए उन्हें ऋषि कहा जाता है क्योंकि "ऋषयो मन्त्र दृष्टारः वेदमन्त्रों के अर्थ का दृष्टा ऋषि होता है। ने कर्म सिद्धान्तपुनर्जन्मब्रह्मचर्य तथा सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया। उन्होने ही सबसे पहले 1876 में 'स्वराज्य' का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। आज स्वामी दयानन्द के विचारों की समाज को नितान्त आवश्यकता है।
स्वामी दयानन्द के विचारों से प्रभावित महापुरुषों की संख्या असंख्य है, इनमें प्रमुख नाम हैं- मादाम भिकाजी कामा,भगत सिंह पण्डित लेखराम आर्यस्वामी श्रद्धानन्दपण्डित गुरुदत्त विद्यार्थीश्यामजी कृष्ण वर्माविनायक दामोदर सावरकरलाला हरदयालमदनलाल ढींगराराम प्रसाद 'बिस्मिल'महादेव गोविंद रानडेमहात्मा हंसराजलाला लाजपत राय इत्यादि। स्वामी दयानन्द के प्रमुख अनुयायियों में लाला हंसराज ने 1886 में लाहौर में 'दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज' की स्थापना की तथा स्वामी श्रद्धानन्द ने 1901 में हरिद्वार के निकट कांगड़ी में गुरुकुल की स्थापना की।