Sunday, January 4, 2015

तदर्थ शिक्षकों को स्थायी करने पर फिर छिड़ी रार
शिक्षक संगठनों ने की
दिसंबर 2000 तक नियुक्त शिक्षकों को स्थायी करने की मांग

लखनऊ। तदर्थ शिक्षकों को स्थायी करने को लेकर एक बार फिर रार छिड़ गई है। 25 जनवरी 1999 तक नियुक्त तदर्थ शिक्षकों को स्थाई करने के सरकार के निर्णय का शिक्षक संगठनों ने विरोध किया है। संगठनों का कहना है कि सहायता प्राप्त इंटर कॉलेजों में तदर्थ शिक्षकों को रखने का अधिकार प्रबंधकों के पास 30 दिसंबर 2000 तक था। इसलिए तब तक रखे गए तदर्थ शिक्षकों को पहले चरण में हरहाल में स्थायी किया जाना चाहिए।
माध्यमिक शिक्षा परिषद से सहायता प्राप्त इंटर कॉलेजों में संबद्ध प्राइमरी स्कूलों (कक्षा आठ तक) के लिए शिक्षकों की भर्ती का अधिकार प्रबंधन के पास है। इसके बाद एलटी, प्रवक्ता व प्रधानाचार्य के पदों पर भर्ती का अधिकार माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के पास है। राज्य सरकार ने वर्ष 1981 में कठिनाई निवारण अधिनियम बनाया था। इसमें कॉलेज प्रबंधन को यह अधिकार दिया गया कि छात्र हितों के लिए वे जरूरत पर तदर्थ शिक्षक रख सकेंगे, लेकिन आयोग से स्थायी नियुक्ति के बाद इन्हें हटा दिया जाएगा।
कठिनाई निवारण अधिनियम के आधार पर ही प्रबंधकों ने तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति की। तदर्थ शिक्षकों को सबसे पहले 12 जून 1985 फिर 6 अप्रैल 1991 व 6 अगस्त 1993 को स्थायी किया गया। इसके बाद 25 जनवरी 1999 को यूपी माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड अधिनियम 1982 की धारा 18 को संशोधित करते हुए तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति की व्यवस्था समाप्त कर दी गई। लेकिन कठिनाई निवारण अधिनियम को 30 दिसंबर 2000 को समाप्त किया गया। इसके चलते कॉलेज प्रबंधकों ने 30 दिसंबर 2000 तक तदर्थ शिक्षकों को नियुक्ति करते रहे और इन्हें वैध भी माना जाता रहा। इसलिए शिक्षक संगठन चाहते हैं कि इस अवधि तक नियुक्त तदर्थ शिक्षकों को पहले चरण में स्थायी किया जाना चाहिए।
 
सरकार की 25 जनवरी 1999 तक नियुक्त शिक्षकों को स्थायी करने की है योजना
 
अमर उजाला ब्यूरो