Tuesday, February 11, 2014

टीईटी मेरिट मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंची यूपी सरकार
सर्वोच्च अदालत 14 फरवरी को याचिका पर करेगा सुनवाई, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार के शासनादेश को कर दिया है रद्द
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश सरकार ने परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में 72825 सहायक अध्यापकों के चयन और नियुक्ति के मसले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। हाईकोर्ट ने शिक्षकों का चयन टीईटी की मेरिट के आधार पर किए जाने का आदेश दिया है और बसपा सरकार में 30 नवंबर, 2011 को जारी हुए भर्ती विज्ञापन को सही ठहराया। साथ ही मौजूदा सरकार के 31 अगस्त, 2012 के शासनादेश को रद्द कर दिया है।
अखिलेश सरकार को हाईकोर्ट ने सहायक अध्यापकों की नियुक्ति प्रक्रिया इस साल 31 मार्च तक पूरी करने का निर्देश दिया है। सर्वोच्च अदालत यूपी सरकार की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका पर 14 फरवरी को सुनवाई करेगी। यदि राज्य सरकार की याचिका पर शीर्षस्थ अदालत हाईकोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाती तो प्रदेश सरकार को मार्च तक भर्ती प्रक्रिया को पूरा करने की मुश्किल से जूझना होगा। जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष राज्य सरकार की ओर से पेश हुए अधिवक्ता की गुजारिश पर अदालत ने इस मसले को उन याचिकाओं के साथ सुनवाई के लिए संबद्ध कर दिया है, जो टीईटी लागू होने के बाद राज्य सरकार के खिलाफ दायर की गई थीं। राज्य सरकार ने कहा है कि अगस्त, 2012 के शासनादेश को रद्द करने और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के शासनकाल में जारी किए गए नवंबर, 2011 को जारी भर्ती विज्ञापन को सही ठहराए जाने के हाईकोर्ट का आदेश उचित नहीं है।
अखिलेश सरकार की ओर से 2012 में जारी किए गए शासनादेश में टीईटी को मात्र अर्हता माना गया था और चयन का आधार शैक्षणिक गुणांक कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने बेसिक शिक्षा अध्यापक सेवा नियमावली 1981 के 15वें संशोधन के नियम 14(3) को असंवैधानिक करार दिया और इस साल मार्च तक भर्ती प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया। शीर्षस्थ अदालत ने राज्य सरकार से कहा है कि टीईटी लागू होने से पहले की नियुक्तियों के मसले पर अधिवक्ता आरके सिंह की याचिका के साथ यूपी के आग्रह पर अदालत सुनवाई करेगी। पीठ के समक्ष राज्य सरकार की ओर से हालांकि तत्काल राहत की मांग की गई लेकिन अदालत ने अन्य याचिकाओं के साथ प्रदेश सरकार की याचिका को संबद्ध करते हुए 14 फरवरी को उनकी मांग पर विचार करने को कहा है।
हाईकोर्ट ने अभ्यर्थी शिवकुमार पाठक व अन्य की ओर से दायर याचिका पर प्रदेश सरकार के 26 जुलाई, 2012 के उस शासनादेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें उस्मानी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर टीईटी प्राप्तांक को मेरिट नहीं बनाने की बात कही गई थी। हाईकोर्ट की गत वर्ष 20 नवंबर को डबल बेंच ने एकल खंडपीठ के आदेश को चुनौती देने वाली अभ्यर्थियों की याचिकाओं पर यह फैसला दिया था। गौरतलब है शिक्षकों की भर्ती के लिए दो बार आवेदन लिए गए हैं। पहली बार 68 और दूसरी बार 69 लाख आवेदन आए। कई आवेदकों ने नौकरी मिलने की उम्मीद में 30 से 40 जिलों में आवेदन किए हैं। इससे एक तरफ सरकार का खजाना भरा, तो वहीं दूसरी ओर सरकारों के बदलने के साथ तब्दील होते नियमों की मार आवेदकों पर पड़ी। तब हाईकोर्ट ने फैसले जारी करते हुए कहा कि प्रदेश में सवा लाख प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों के 2.70 लाख पद रिक्त हैं। ऐसे में शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत सरकार नियुक्ति के लिए बाध्य हैं।