शिक्षकों पर शोध के मिले चौंकाने वाले परिणाम
Wed, 18 Dec 2013 01:06 AM (IST)
विकास ओझा
वाराणसी : प्राथमिक स्कूलों में वर्ष 1999 से
पूर्व तैनात शिक्षक अर्थात 'गुरुजी' वर्तमान
व्यवस्था में भी खुश हैं लेकिन इसके बाद के तैनात शिक्षक यानी 'सर जी' लोग परेशान हैं। वजहें तमाम मगर व्यक्तिगत
दिक्कतें ज्यादा हैं जिसकी वजह से मनस्ताप, चिंता से ग्रसित
है। नए शिक्षक अर्थात 'सर जी' लोग
चाहते तो बहुत कुछ हैं लेकिन हकीकत को स्वीकारने से घबराते कतराते हैं। इतना ही
नहीं, वर्तमान व्यवस्था संग तालमेल से भागते हैं। नतीजा,
जाने अनजाने उद्देश्य से भटक रहे हैं। इसका असर बच्चों की
शिक्षा-दीक्षा पर भी पड़ रहा है।
'प्राथमिक विद्यालयों में पूर्व व नव नियुक्त शिक्षकों में
व्याप्त मनस्ताप, चिंता एवं समायोजन के तुलनात्मक अध्ययन'
विषय पर हुए शोध में यह चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। वीरबहादुर
सिंह पूर्वाचल, जौनपुर विश्वविद्यालय प्रशासन ने डा अजय
कुमार दुबे के निर्देशन में डा. कामेश्वर प्रताप सिंह की इस शोध सारांशिका का
मूल्यांकन कर उसे हरी झंडी भी दे दी है। परिषदीय विद्यालयों के शिक्षकों व उनकी
मानसिकता आदि पर केंद्रित अब तक का संभवत: यह पहला शोध है।
डा. केपी सिंह इस समय प्राथमिक विद्यालय, चिरईगांव
में सहायक अध्यापक हैं। उन्होंने बताया का इस विषय को चुनने के पीछे मुख्य वजह यही
थी कि प्राचीन काल से शिक्षक का पद गौरव का प्रतीक रहा है पर वर्तमान अपने भूत से
कमजोर होता दिख रहा था। आखिर ऐसा क्यों, इसी जिज्ञासा ने
मुझे प्रेरित किया। इस शोध में शहरी व ग्रामीण क्षेत्र के परिषदीय विद्यालयों के
नए व पुराने 400 महिला व पुरुष शिक्षकों को शामिल किया गया
है।
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पुराने शिक्षकों का मतलब
शोध में शामिल किए गए पुराने शिक्षकों का मतलब, जिनकी
तैनाती वर्ष 1999 से पहले हुई थी। उस वक्त शैक्षिक योग्यता
इंटरमीडिएट, बीए, बीटीसी थी।
नए शिक्षकों से आशय
शोध में शामिल किए गए नए शिक्षकों का आशय यह कि 1999 के
बाद के वह शिक्षक जिन्हें बीएड प्रशिक्षण प्राप्त है और बीटीसी के छह मासा
प्रशिक्षण के बाद उन्हें नियुक्ति मिली है।
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शोध के महत्वपूर्ण अंश
-नव नियुक्त शिक्षक महत्वाकांक्षा के कारण प्राथमिक स्कूलों
में शिक्षक तो बन जाते हैं लेकिन उच्च शिक्षा के अनुरूप पद प्राप्त न करने के कारण
उनमें निराशा व मन में कहीं मनस्ताप व्याप्त हो जाता है।
-गांव में नवनियुक्त महिला शिक्षक अत्यधिक महत्वाकांक्षा की
वजह से ज्यादा चिंताग्रस्त हैं जबकि पुरानी महिला शिक्षक वर्तमान व्यवस्था में भी
संतुष्ट नजर आई।
-पुराने शिक्षकों को अपनी क्षमता तथा कमजोरियों का ज्ञान है।
यह लोग शारीरिक व मानसिक सभी स्तर से अपने शिक्षण कार्य में लगे रहते हैं। पुराने
शिक्षकों में धैर्य है। नए शिक्षकों में इसका अभाव है।
-नए शिक्षक मनोवैज्ञानिक, सामाजिक
सरोकारों को लेकर चलने के कारण विद्यालयी वातावरण से दूर होते जा रहे हैं।
साभार दैनिक जागरण