Sunday, December 1, 2013


एक और कोशिश

उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी प्राथमिक विद्यालयों में उपलब्ध सुंिवधाओं और कमियों का पता लगाने के लिए उनकी मैपिंग कराने का जो फैसला किया वह निश्चित रूप से एक सही पहल है। राज्य में बुनियादी शिक्षा की बदहाली किसी से छिपी नहीं है और वे समस्याएं भी जगजाहिर हैं जिनसे प्राथमिक विद्यालय जूझ रहे हैं। केवल इतना ही पर्याप्त नहीं है कि प्राथमिक विद्यालयों की खामियों पर नए सिरे से निगाह डाली जाए, बल्कि राज्य सरकार को इन खामियों के निदान के लिए तत्काल प्रभाव से जुटना भी होगा। बेहतर हो कि सभी प्राथमिक विद्यालयों की मैपिंग के बाद एक ऐसी रणनीति तैयार की जाए जिससे बुनियादी शिक्षा के स्तर पर पठन-पाठन का माहौल दुरुस्त हो। अगर प्राथमिक विद्यालयों की मैपिंग की इस पहल पर कामचलाऊ तरीके से अमल किया जाता है तो बुनियादी शिक्षा में सुधार की एक और कोशिश नाकाम ही साबित होगी।

प्राथमिक शिक्षा के ढांचे में सुधार की बातें तो बहुत की जाती हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि इस दिशा में कुछ ठोस होता हुआ नजर नहीं आता। यही कारण है कि प्राथमिक शिक्षा की बदहाली दूर होने का नाम नहीं ले रही है। शिक्षा के स्तर में सुधार तो राज्य सरकार की प्राथमिकता सूची में शीर्ष पर होना चाहिए। समस्या केवल यह नहीं है कि प्राथमिक विद्यालयों में सुंिवधाओं का अभाव है, बल्कि यह भी है कि उनमें विद्यार्थियों को जो शिक्षा दी जा रही है वह गुणवत्ता की कसौटी पर खरी नहीं उतरती। शिक्षा में गुणवत्ता के अभाव के अनेक कारण हैं। बड़ी संख्या में शिक्षकों की कमी ऐसा ही एक कारण है। यह आश्चर्यजनक है कि एक ओर प्राथमिक शिक्षा का ढांचा शिक्षकों की कमी का सामना कर रहा है और दूसरी ओर शिक्षकों पर गैर शैक्षणिक कार्यो का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। स्पष्ट है कि राज्य सरकार को प्राथमिक शिक्षा में सुंिवधाओं के ढांचे को दुरुस्त करने के साथ ही उन कारणों का निवारण भी प्राथमिकता के आधार पर करना होगा जो पठन-पाठन के स्तर को सुधारने में बाधक बन रहे हैं। यह निराशाजनक है कि राज्य में प्राथमिक शिक्षा की बदहाली के कारण अनिवार्य शिक्षा कानून पर सही तरह अमल नहीं हो पा रहा है।

दैनिकजागरण (स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश)