Sunday, December 22, 2013


बीटीसी में मारामारी, बीएड में सीटें खाली

शैलेंद्र ‌श्रीवास्तव

अमरउजाला रविवार, 22 दिसंबर 2013 लखनऊ Updated @ 1:52 AM IST



प्रदेश में बीएड का क्रेज घट रहा है। सरकारी कॉलेजों को छोड़ दें तो निजी कॉलेजों में सीटें भरने के लिए तीन बार काउंसलिंग कराई गई, फिर भी सीटें खाली रह गईं।

इसके बाद कॉलेज प्रबंधन को भी सीधे सीटें भरने का मौका 15 अक्तूबर तक दिया गया, लेकिन सीटें नहीं भर पाई।

गोरखपुर विश्वविद्यालय ने शासन को जो रिपोर्ट भेजी है उसके मुताबिक निजी कॉलेजों में बीएड की करीब 20,944 सीटें खाली हैं। वहीं बीटीसी की एक-एक सीट के लिए मारामारी है।

बीटीसी की 41,500 सीटों के लिए 6.67 लाख युवाओं ने आवेदन किया है। जानकारों की माने तो बीएड के प्रति क्रेज कम होने की मुख्य वजह प्राइमरी कक्षाओं के लिए आयोजित होने वाली टीईटी से बीएड वालों को अलग करना है।

प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में शिक्षक बनने की योग्यता बीटीसी है। पर राज्य सरकार शिक्षकों की कमी को देखते हुए बीएड वालों को छह माह का विशिष्ट बीटीसी का प्रशिक्षण देकर शिक्षक बनाती रही है।

इसको देखकर प्राइमरी स्कूलों में शिक्षक बनने के लिए बीएड का क्रेज काफी तेजी से बढ़ा। स्थिति यह हो गई कि बीएड की 1,20,811 सीटें हो गईं।

इस बीच राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने यह व्यवस्था दे दी कि बीएड वाले प्राइमरी स्कूलों में 31 मार्च 2014 तक ही शिक्षक बनाए जा सकते हैं।

इसके आधार पर बेसिक शिक्षा विभाग ने टीईटी परीक्षा से बीएड वालों को अलग कर दिया। टीईटी में बीएड वाले अब केवल जूनियर हाईस्कूल स्तर की परीक्षा के लिए मान्य हैं।

इसके बाद से प्रदेश में बीएड करने वालों की संख्या में कमी आई है। गोरखपुर विश्वविद्यालय ने इस बार बीएड की 1,20,811 सीटों के लिए प्रवेश परीक्षा कराई थी। लेकिन चार चरणों की काउंसलिंग के बाद भी सभी सीटें नहीं भर पाई हैं।

बीएड का क्रेज घटने के पीछे मुख्य वजह प्राइमरी स्कूलों में शिक्षक न बन पाना और बीएड कॉलेजों की फीस अधिक होना है। जब तक प्राइमरी शिक्षक बनने का मौका था, तब तक अधिक फीस देकर भी प्रवेश की मारामारी रही। अब केवल बीटीसी वाले ही प्राइमरी शिक्षक के लिए पात्र माने गए है। प्रदेश में बीटीसी कॉलेजों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। इसलिए बीएड की सभी सीटें नहीं भर पाई। इसके लिए कुछ हद तक काउंसलिंग व्यवस्था को भी दोषी माना जा सकता है।

- विनय त्रिवेदी/अध्यक्ष