Sunday, December 1, 2013


सरकारी स्कूल में बच्चों की जान जोखिम में
 
 

गिद्दड़बाहा: पंजाब में जब भी स्कूली स्तर पर बोर्ड की परीक्षाओं के परिणाम आते हैं तो अक्सर ही सरकारी स्कूलों का मूल्यांकन प्राइवेट/पब्लिक स्कूलों से किया जाता है और अक्सर ही सरकारी स्कूलों को प्राइवेट स्कूलों के बुरे परीक्षा परिणामों की लानत झेलनी पड़ती है।
ऐसे में हर किसी के दिमाग में एक ही प्रश्र उठता है कि कुछ भी हो जाए वे अपने बच्चों को बढिय़ा प्राइवेट स्कूलों में ही शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजेंगे। इस बात का हैरानी और अफसोसजनक पहलू यह भी है कि ज्यादातर सरकारी स्कूलों के अध्यापकों के बच्चे प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा हासिल करते हैं। देखा जाए तो दोनों ही संस्थानों में ही पढ़ाई करवाई जाती है परन्तु परिणामों के समय इतना बड़ा अन्तर आखिर किस बात को लेकर आता है कि प्राइवेट स्कूलों से शिक्षित विद्यार्थियों का पास प्रतिशत सरकारी स्कूलों से शिक्षा हासिल करने वाले विद्यार्थियों से काफी बढ़ जाता है? क्या सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापकों की काबिलियत कम होती है या प्राइवेट स्कूलों में विद्यार्थियों को शिक्षा संबंधी अधिक सुविधाएं मुहैया करवाई जाती है? परन्तु शायद ऐसा कुछ नहीं है।
इस दरार (परीक्षा परिणामों में अन्तर) का कारण यही नजर आता है कि जहां प्राइवेट संस्थान अध्यापकों की नियुक्ति, इमारतें, पानी और खेल मैदान जैसी सुविधाएं विद्यार्थियों को देने के खुद मौके पर ही फैसले कर सकते हैं वहीं सरकारी स्कूलों को यही सब कुछ करवाने के लिए लंबी विभागीय प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। सरकार और विभागों द्वारा उचित समय पर फैसले न लिए जाने के कारण हर विभाग की तरह शिक्षा के क्षेत्र में प्राइवेट शैक्षणिक संस्थान सरकारी स्कूलों से आगे निकल जाते हैं।
ऐसा ही देखने को मिला गिद्दड़बाहा के गांव फकरसर-थेहड़ी के सरकारी सीनियर सैकेंडरी स्कूल में जहां एक ओर स्कूल के छात्रों को वर्ष 1956 में अपने बाप-दादा के जमाने में बनी स्कूल की खस्ताहाल इमारत में हर समय मौत के साए में पढ़ाई करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, वहीं उनकों अध्यापकों की कमी के चलते पढ़ाई का भी नुक्सान झेलना पड़ रहा है। वर्ष 1956 में बने इस स्कूल की पुरानी इमारत खस्ताहाल है। आजकल मौसम में तो फिर भी विद्यार्थी धूप में बैठक कर पढ़ाई कर लेते हैं परन्तु उनकी हालत उस समय और भी दयनीय हो जाती है जब भीषण गर्मी में या बारिश के दिनों में इस इमारत के दरारों वालों कमरों से पानी के फव्वारेचलने शुरू हो जाते हैं।
वर्ष 1956 के बाद इस स्कूल में पढ़ाई के मात्र 4 कमरे, 1 हॉल कमरा, 1 कम्प्यूटर लैब, 1 रसोई और 1 सैनेटरी ब्लाक (पेशाबघर) का ही निर्माण हुआ है जबकि स्कूल में 197 लड़के और इतनी ही लड़कियों सहित कुल 394 विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। ऐसे में ये 4 नए कमरे स्कूल के विद्यार्थियों के किए नाकाफी हैं और इसी के चलते विद्यार्थियों को 60 वर्ष पहले निर्मित खस्ताहाल कमरों और इनके बरामदों में पढ़ाई करनी पड़ती है।
स्टाफ की कमी
इस स्कूल का एक अन्य दुखदायी पहलू यह है कि स्कूल में स्टाफ  की कमी है। यहां तक कि स्कूल के अपग्रेड होने के बाद नियमित तौर पर शिक्षा विभाग द्वारा कोई अध्यापक तक मुहैया नहीं करवाया गया और कभी किसी लैक्चरार या किसी अन्य वरिष्ठ अध्यापक को चार्ज संभाल दिया जाता है। जहां इस स्कूल में इतनी कमियां देखने को मिलीं, वहीं स्कूल के सफाई के यादातर इंतजाम तसल्लीबक्श थे परन्तु पहले से निर्मित पाखानों/पेशाबघरों की हालत तो बहुत ही दयनीय थी।
स्कूल में स्टाफ की कमी की कोई मांग नहीं 
जब इस पूरे मामले संबंधी जिला शिक्षा अधिकारी दविंद्र कुमार राजौरिया से फोन पर बात की गई तो उन्होंने बताया कि उनके पास अभी तक उक्त स्कूल में स्टाफ की कमी और अन्य कामों के प्रति कोई मांग नहीं आई और यदि स्कूल में कोई कमी है तो आने वाले बजट में स्कूल की कमियों को पूरा कर दिया जाएगा।

साभार पंजाबकेसरी