स्कूलों में परेशानी होती है डिस्लेक्सिया पीड़ित बच्चों को
नई दिल्ली, एजेंसी
डिस्लेक्सिया बीमारी पर हाल में एक उपान्यास लिखने वाली ब्रिटिश
लेखिका सैली गार्डनर का कहना है कि शब्दों को पढ़ने में परेशानी से जूझने वाले
बच्चों पूरी दुनिया में एक जैसी समस्याओं का सामना करते हैं।
बच्चों के साहित्य सम्मेलन, बुकारो में शामिल होने के लिए यहां आयी सैली 11 साल की उम्र
में डिस्लेक्सिया से पीड़ित थीं और करीब 14 साल की उम्र तक वह पढ़ नहीं पाती थीं। उनकी नयी किताब मैगट मून, सपने देखने वाले
उन बच्चों को समर्पित हैं जिन्हें स्कूल में अनदेखा किया जाता है और जो कभी
पुरस्कार नहीं जीतते।
लेखिका ने अपनी किताब को लेकर कहा कि मैं एक बच्चों के दृष्टिकोण को
रखना चाहती थी जिसका स्कूल में मुश्किल भरा अनुभव रहा। वह डिस्लेक्सिया से पीड़ित
है और मुझे पता है कि यह कितना मुश्किल हो सकता है। पूरी दुनिया में हालात एक जैसे
ही हैं।
50 की उम्र पार कर
चुकी लेखिका अब तक बच्चों के लिए एक दर्जन से अधिक बेस्टसेलिंग किताबें लिख चुकी
हैं। इनमें किशोर उम्र के बच्चों के लिए लिखे गए चार उपन्यास शामिल हैं।
सैली ने कहा कि मुझे स्कूल में बहुत ज्यादा परेशान किया जाता था, क्योंकि मैं
बाकी बच्चों से अलग थी। मुझे अपने जूते बांधने या कपड़े ठीक करने में दिक्कत होती
थी।
मैगट मून 15
साल के एक डिस्लेक्सिया पीड़ित लड़के स्टैंडीस ट्रेडवेल की कहानी है। इस किताब के
माध्यम से लेखिका यह दिखाना चाहती हैं कि डिस्लेक्सिया एक उपहार हैं, कोई ऐसी चीज
नहीं जिसका इलाज किया जा सके। यह शब्दों को पढ़ने में सक्षम न होने से कहीं अधिक
कुछ है।
तीन बच्चों की मां सैली ने कहा कि वह 14 साल की उम्र से पढ़ने में सक्षम हुई और फिर कभी
पीछे मुड़कर नहीं देखा।
साभार हिंदुस्तान