Saturday, April 7, 2018

शहर और गांव में बिना मान्यता के चल रहे हैं कई स्कूल


शहर और ग्रामीण क्षेत्र में बड़ी संख्या में बिना मान्यता के कई निजी स्कूल चल रहे हैं। बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से ऐसे 170 विद्यालयों को पिछले साल नोटिस दी गई थी। विद्यालय प्रबंधकों को निर्देश दिया गया था कि वे नियमानुसार मान्यता हासिल करें। अन्यथा स्कूल बंद कर दें।
पिछले वर्ष जुलाई महीने में बेसिक शिक्षा विभाग ने ब्लॉक स्तर पर गैर मान्यता प्राप्त विद्यालयों के खिलाफ अभियान चलाया था। उस दौरान कई स्कूल बंद हो गए। ऐसे स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों को पास के सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाया गया। आराजी लाइन ब्लाक में करीब 70 गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों के खिलाफ पुलिस में भी शिकायत कराई गई। जुलाई में अभियान चलाने के बाद बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी शांत हो गए। सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारियों को ब्लाक स्तर निगरानी के लिए निर्देश दिया गया था। यह माना जा रहा है कि प्रत्येक ब्लॉक में कम से कम एक दर्जन स्कूल गैर मान्यता प्राप्त हैं। कई स्कूलों ने अपने नाम बदल दिए हैं। उन्होंने अभिभावकों को भ्रम में डाल रखा है।
इस बारे में पूछे जाने पर बेसिक शिक्षा अधिकारी बीबी चौधरी ने कहा है कि सभी सहायक बेसिक शिक्षक अधिकारी और नगर क्षेत्र के अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे फिर से छानबीन शुरू करें। आरटीई के प्रावधानों के तहत गैर मान्यता प्राप्त स्कूल के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
वेबसाइट पर भी नहीं मान्यता प्राप्त स्कूलों की सूची
चार साल पहले बेसिक शिक्षा विभाग ने मान्यता प्राप्त स्कूलों की सूची एनआईसी की वेबसाइट पर अपडेट की थी। इसके बाद सूची अपडेट नहीं हो पाई। गैर मान्यता प्राप्त निजी स्कूल अभिभावकों से फीस के रूप में मोटी रकम वसूल कर रहे हैं। पास-पड़ोस का स्कूल होने कारण अभिभावक भी मौन रहते हैं। परेशान तब होती है जब ये अभिभावक दूसरे विद्यालयों में दाखिले के लिए जाते हैं तब उन्हें परेशानी उठानी पड़ती है। उनकी टीसी (ट्रांसफर सर्टिफिकेट) पर बेसिक शिक्षा विभाग हस्ताक्षर करने से इनकार कर देता है।
निजी स्कूलों के मान्यता के 450 आवेदन लंबित
निजी स्कूल खोलने के लिए 450 आवेदन एक साल से पड़े हुए हैं। इसमें 320 कक्षा एक से पांच तक और 130 कक्षा एक से आठ तक के लिए हैं। इन स्कूलों का भौतिक सत्यापन हो चुका है। मान्यता समिति की बैठक लंबे समय से लंबित है। अगर इनके आवेदनों का निस्तारण हो जाता है तो आरटीई के तहत दाखिला पाने वाले गरीब बच्चों को फायदा होगा। इन स्कूलों को भी 25 फीसदी आरक्षित करनी होगी। बेसिक शिक्षा अधिकारी का कहना है कि प्रक्रिया शुरू हो गई है। जल्दी ही मान्यता समिति की बैठक बुलाकर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
सरकार की घोषणा के बाद अभिभावक असमंजस में
निजी स्कूलों की फीस निर्धारित करने के प्रदेश सरकार की घोषणा के बाद अभिभावकों में असमंजस बढ़ गया है। ऐसे अभिभावकों ने आपके अपने अखबार 'हिन्दुस्तान' की हेल्पलाइन नंबर पर यह जानना चाहा कि यह कानून कब से प्रभावी होगा। ऐसे में वे बच्चों की फीस जमा करें या न करें। उनका तर्क है कि जब सरकार यह कह रही है कि कानून इसी सत्र से लागू होगा तो वे बढ़ी हुई फीस क्यों जमा करें। कई  अभिभावकों ने शुक्रवार को इस बारे में जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय से भी पूछताछ की।
अभिभावकों का कहना है अधिकतर लोग फीस जमा कर चुके हैं। हेल्पलाइन पर कई अभिभावकों ने बताया कि कई स्कूलों में अभी भी री-एडमिशन फीस और एनुअल फीस के नाम पर वसूली हो रही है। पड़ाव के मयंक पांडेय और एनके पांडेय ने बताया कि उनके पास में स्थित स्कूल में आठ से नौ हजार रुपया वार्षिक चार्ज लिया जा रहा है। बच्चों को रिबॉक कंपनी का जूता खरीदने के लिए बाध्य किया जा रहा है। जबकि हर माह 35 सौ रुपये फीस ली जा रही है। भगवानपुर के देवेंद्र अग्रवाल का कहना था कि कक्षा पांच के अंग्रेजी की एक किताब की कीमत चार सौ रूपये है। इस किताब में सिर्फ तीन पेज हैं और एक कहानी। अभिभावकों का कहना है कि निजी स्कूलों की फीस के बारे में प्रदेश सरकार ने जो कानून बनाया है कि उसे शीघ्र अमल में लाया जाए, जिससे अभिभावकों को उसका लाभ मिल सके।