शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद
भी विद्यालयों में 18119 प्राथमिक और 30730 उच्च शिक्षकों के पास आवश्यक शैक्षिक योग्यता नहीं थी।
लखनऊ (जेएनएन)।
प्रदेश के लाखों बच्चे अभी शिक्षा के अधिकार से काफी दूर हैं। गुरुवार को
विधानमंडल के दोनों सदनों में पेश की गई भारत के नियंत्रक -महालेखापरीक्षक (सीएजी)
की रिपोर्ट में यह तथ्य उजागर हुआ है कि 2011-12 से 2015-16 के दौरान हर साल लगभग 20 लाख बच्चे पढ़ाई छोड़ दे रहे हैं। यह विश्लेषण
लेखा टीम ने जिला शिक्षा सूचना प्रणाली के आंकड़ों के आधार पर तैयार किया है।
हालांकि राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक प्रति वर्ष ड्रापआउट करने वाले बच्चों
की औसत संख्या 0.63
लाख है। सीएजी ने
आंकड़ों के इस अंतर पर भी आपत्ति जताई है।
सामंजस्य की कमी
2010
से लेकर 2016 तक राज्य में प्राथमिक शिक्षा के हालात पर
सीएजी की यह रिपोर्ट पूर्ववर्ती बसपा-सपा सरकार को सवालों के कठघरे में खड़ा करती
है। कहा गया कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने
के बाद भी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में क्रमश: 18119 और 30730 शिक्षकों के पास आवश्यक शैक्षिक योग्यता नहीं थी। क्रियान्वयन सोसाइटियों और जिला नियोजन
अधिकारियों के मध्य सामंजस्य की कमी से गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों का अत्यंत कम
नामांकन हुआ। बच्चों की ड्राप आउट संख्या बढ़ी। कक्षा छह में स्कूल छोडऩे वालों की
संख्या सबसे अधिक है। इसके कारण के रूप में घरेलू, कृषि कार्यों और पारंपरिक शिल्प में नियोजन और गरीबी बताया गया है।
आवश्यक सुविधाएं
देने में भी विफल
राज्य सरकार
विद्यालय भवनों और वहां आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने में भी असफल रही। बिजली
उपलब्ध कराने के लिए 64.22
करोड़ रुपये व्यय
किए गए। फिर भी 34098
विद्यालयों में
वायरिंग और विद्युत फिटिंग नहीं नहीं की जा सकी। सीएजी की रिपोर्ट ने बच्चों को
पाठ्यपुस्तकें और यूनिफार्म उपलब्ध कराने पर भी सवाल खड़े किए हैं। सर्व शिक्षा
अभियान के तहत पर्याप्त निधि होने के बावजूद 2012-16 की अवधि में 97 लाख बच्चों को यूनिफार्म उपलब्ध नहीं कराया जा सका।
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