शिक्षा
मित्रों की नियुक्ति
इसमें
संदेह नहीं कि उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा का ढांचा बड़े पैमाने पर शिक्षकों
की कमी से जूझ रहा है और इस कमी को दूर करने के लिए जो कुछ संभव हो वह किया ही
जाना चाहिए। इस लिहाज से राज्य सरकार ने शिक्षा मित्रों को सहायक शिक्षकों के रूप
में नियुक्त करने का जो निर्णय लिया उसे उपलब्ध संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के रूप
में भी देखा जा सकता है, लेकिन इसके लिए जो तरीका अपनाने का फैसला किया गया
वह कई सवाल खड़े करने वाला है। सबसे पहला सवाल तो शिक्षा मित्रों को शिक्षक पात्रता
परीक्षा यानी टीईटी उत्तीर्ण करने की अनिवार्यता से मुक्ति प्रदान करने के फैसले
को लेकर खड़ा होता है। जब शिक्षकों की नियुक्ति के लिए टीईटी उत्तीर्ण करने की
अनिवार्यता है तब शिक्षा मित्रों को इससे छूट क्यों दी जा रही है?
राज्य सरकार शिक्षा मित्रों को यह छूट देने के लिए उत्तर प्रदेश
बेसिक शिक्षा अध्यापक सेवा नियमावली में संशोधन करने जा रही है और यह संभव है कि
उसके इस फैसले को अदालत में चुनौती दी जाए। यदि ऐसा होता है तो शिक्षकों की कमी
दूर करने के लिए शिक्षा मित्रों को स्थायी शिक्षक के रूप में नियुक्त करने की
प्रक्रिया लटक सकती है। बेहतर होता कि राज्य सरकार शिक्षा मित्रों के लिए भी किसी
पात्रता परीक्षा का आयोजन करती जिससे योग्य और सक्षम शिक्षकों की नियुक्ति का
मार्ग प्रशस्त होता। राज्य सरकार ने स्थायी शिक्षकों के रूप में नियुक्ति के लिए
शिक्षा मित्रों की अधिकतम आयुसीमा 60 साल निर्धारित करने
का जो फैसला किया वह विचित्र भी है और हास्यास्पद भी। ऐसी किसी सेवा की खोजबीन
करना कठिन है जिसमें नियुक्ति के लिए अधिकतम आयुसीमा 60 वर्ष
निर्धारित की गई हो। इस फैसले से यही प्रतीत होता है कि राज्य सरकार लगभग सभी
शिक्षा मित्रों को स्थायी शिक्षक के रूप में नियुक्त करने का फैसला कर चुकी है और
उसके पास प्राथमिक शिक्षा के ढांचे को दुरुस्त करने की कोई दीर्घकालिक योजना नहीं
है। यदि यह सोचा जा रहा है कि बड़े पैमाने पर शिक्षकों की नियुक्ति कर देने मात्र
से प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर सुधर जाएगा तो ऐसा कुछ होने वाला नहीं है।
[स्थानीय संपादकीय दैनिकजागरण : उत्तर प्रदेश Sun, 16 Feb 2014 06:03 AM (IST)]
साभार दैनिकजागरण