Tuesday, January 7, 2014

विशिष्ट बीटीसी में दाखिला बंद होने पर यूपी से जवाब मांगा


नई दिल्ली। प्राइमरी स्कूलों में सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए विशिष्ट बीटीसी-2008 में दाखिला बंद करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया है। हाईकोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार की ओर से बड़ी संख्या में पदों के रिक्त होने की सूचना दिए जाने के बावजूद दाखिले की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी।
जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता वाली बेंच ने बेसिक टीचर्स सर्टिफिकेट (बीटीसी) में प्रवेश से वंचित किए गए उम्मीदवारों की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। पीठ के समक्ष उम्मीदवारों के अधिवक्ता आरके सिंह ने कहा कि शिक्षा का अधिकार कानून अमल में आने के बाद शिक्षकों की कमी हो गई। इस कारण राज्य सरकार ने विशेष दाखिला अभियान चलाया था। हाईकोर्ट ने 31 जुलाई, 2012 को प्रवेश बंद करने का आदेश जारी किया। जबकि विशिष्ट बीटीसी में हर साल दाखिले नहीं होते हैं। उन्होंने दलील दी कि हाईकोर्ट ने इस बात पर गौर नहीं किया कि शिक्षकों की विशेष भर्ती के लिए ही विशिष्ट बीटीसी पाठ्यक्रम को दो साल से घटाकर छह माह का किया गया है।
पीठ ने अधिवक्ता के तर्क से सहमति जताते हुए पूछा कि इस पर राज्य सरकार का क्या कहना है। अधिवक्ता ने जवाब में कहा कि हाईकोर्ट ने गत वर्ष 20 अगस्त को दिए फैसले में 2008 से जारी दाखिले की प्रक्रिया पर रोक लगा दी। जबकि राज्य सरकार का कहना था कि बड़ी संख्या में बीटीसी प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके उम्मीदवारों को सहायक अध्यापक नियुक्त किए जाने के बावजूद छह हजार से अधिक अध्यापकों के पद रिक्त पड़े हैं। सरकार ने 2008 में विशेष बीटीसी भर्ती अभियान शुरू किया था। इसके लिए बाकायदा विज्ञापन भी दिया गया था। राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने दो साल के पाठ्यक्रम को घटाकर छह माह कर दिया लेकिन छह माह का कोर्स सिर्फ बीएड, एलटी ट्रेनिंग सर्टिफिकेट, शारीरिक शिक्षा में डिप्लोमा तथा शारीरिक शिक्षा में स्नातक धारकों के लिए ही था। 28 हजार से अधिक पदों को भरने के लिए प्रशिक्षण अभियान चलाया गया था।
गौरतलब है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से लागू किए गए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) के खिलाफ दायर याचिका पर केंद्र व राज्य सरकार से जवाब तलब किया था। उस मामले में विशिष्ट बीटीसी में 2007-08 में उत्तीर्ण हुए अभ्यर्थियों ने सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया है। इन अभ्यर्थियों का कहना है कि टीईटी को लागू किए जाने से पहले उनका कोर्स पूरा हो चुका था लेकिन तब गैर एनसीटीई संस्थानों से मान्यता प्राप्त डिग्रियां होने के आधार पर राज्य सरकार ने प्रशिक्षण से रोक दिया था। सर्वोच्च अदालत ने अक्तूबर, 2010 में दिए गए फैसले में अभ्यर्थियों की बीएड डिग्रियों को सही करार दिया। हालांकि इससे पहले राज्य सरकार ने अगस्त, 2010 में टीईटी लागू कर दिया। राज्य सरकार ने इस मसले पर अदालत में अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर जारी किया नोटिस