शिक्षा के प्रति
सरकारी उदासीनता
Sat, 04 Jan 2014
प्रदेश के विकास
में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षा की होती है। कोई भी प्रदेश इसकी अनदेखी करके
उन्नति के पथ पर अग्रसर नहीं रह सकता है। स्कूलों व कॉलेजों में जितनी अच्छी
शिक्षा बच्चों व युवाओं को मिलेगी प्रदेश के विकास की नींव उतनी ही मजबूत होगी।
अच्छी शिक्षा के लिए आधारभूत ढांचे के साथ ही यह भी जरूरी है कि शिक्षकों को समय
पर वेतन मिलता रहे और खेल इत्यादि के लिए स्कूल-कॉलेजों को जिस फंड की जरूरत होती
है वह पहुंचता रहे। दुर्भाग्य से पंजाब में ऐसा नहीं हो पा रहा है। नौ महीने से
कॉलेज शिक्षकों को वेतन नहीं मिला है। कॉलेजों के करीब 600 करोड़ रुपये सरकार की तरफ बकाया हैं। इस समय कालेजों में
ग्रांट की चौथी किस्त पहुंच जानी चाहिए थी, लेकिन अभी तक दूसरी किस्त भी नहीं पहुंची है। इससे प्रदेश
के 80 प्रतिशत कॉलेजों का
अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। उच्च शिक्षा के साथ ही स्कूली स्तर पर भी सरकार की
लापरवाही उजागर होती है। बच्चों के उचित शारीरिक विकास के लिए स्कूलों में खेलकूद
का बहुत महत्व है। प्रदेश में करीब 15 स्पोर्ट्स विंग स्कूलों को वित्त वर्ष 2009-2010 से कोई फंड जारी नहीं हुआ है। यह करीब 65 लाख रुपये बनता है। फंड न मिलने से खिलाड़ियों
को डाइट व स्पोर्ट्स सामग्री नहीं मिल पा रही है। स्कूल प्रमुखों का कहना है कि
वे कई बार विभाग के उच्चाधिकारियों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन ग्रांट जारी नहीं की जा रही है। उन्होंने बच्चों के
भविष्य को देखते हुए अपनी जेब से काफी पैसे खर्च कर दिए हैं, लेकिन अब उनके भी हाथ खड़े हैं। सरकार का यह
रवैया चिंताजनक है। शिक्षा के प्रति उदासीनता किसी भी कीमत पर उचित नहीं है।
प्रदेश के शिक्षा मंत्री कह रहे हैं कि वित्त विभाग को ग्रांट जारी करने का आदेश
जारी कर दिया गया है और कॉलेजों को शीघ्र ग्रांट मिल जाएगी। सवाल उठता है कि यह
नौबत आती ही क्यों है? आखिर सरकार समय
रहते ऐसा कदम क्यों नहीं उठाती जिससे स्कूलों व कॉलेजों को समय पर ग्रांट मिलती
रहे और इस तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। सरकार को तत्काल इस दिशा में कदम
उठाना चाहिए जिससे शिक्षकों को और मानसिक कष्ट का सामना न करना पड़े तथा स्कूलों
में प्रतिभावान खिलाड़ियों का भविष्य बर्बाद न हो।
[स्थानीय संपादकीय
दैनिक जागरण : पंजाब]