बरेली: नीलू वाकई नजीर है, खासकर बेसिक शिक्षा के उन शिक्षकों के लिए जो मोटी
पगार लेने के बाद भी बच्चों को पढ़ाने से जी चुराते हैं। कहने को वह चपरासी है,
लेकिन जज्बा किसी टीचर से कम नहीं। तभी तो खुद की नौकरी से इतर वह
बच्चों की शिक्षिका बनकर उनका भविष्य संवारने में जुटी
है। बिना किसी आग्रह और मेहनताने के।
विडंबना ही कहेंगे, नीलू उत्तर प्रदेश के बरेली में आर्य समाज अनाथालय
स्थित बेसिक शिक्षा विभाग के जिस प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत है, उसमें एक भी शिक्षक नहीं हैं। सिर्फ हेडमास्टर हैं। वह भी तमाम कागजी
कामों के चक्कर में इधर-उधर दौड़ते रहते हैं। बच्चों को पढ़ाना दूर की बात थी। बच्चे
स्कूल तक बस्ता लेकर आते और कुछ घंटे खाली बैठकर लौट जाते।
नीलू के लिए रोजाना यह देखना बेहद अखरता लेकिन, उसका पद आड़े आ जाता। हालांकि वह ज्यादा दिन तक खुद को रोक नहीं पाई और खुद
ही बच्चों को पढ़ाने में जुट गई। यह उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। स्कूल आकर
पहले वह अपनी ड्यूटी से जुड़े काम निपटाती है, उसके बाद बिना
कहे बच्चों को बेहद तल्लीनता से पढ़ाने में जुट जाती है।
नीलू कहती है, बच्चे खाली न बैठे रहें इसलिए इनको पढ़ाती हूं।
आत्मिक शांति मिलती है। सारे बच्चे मुझे शिक्षिका ही समझते हैं। अच्छा लगता है। इस
स्कूल में कोई शिक्षामित्र भी नहीं है और कम से कम तीन शिक्षकों की जरूरत है।
हेडमास्टर सतीश कुमार कन्नौजिया ने बताया कि 17 अक्टूबर 2017 को वह स्कूल में प्रमोशन के बाद आए थे।
तब कोई शिक्षक यहां नहीं था। नीलू ही अकेली थी। वही इन बच्चों को पढ़ाती थी और तब
से लगातार पढ़ाने में सहयोग करती है।
शहर के परिषदीय स्कूलों में शिक्षकों की वाकई कमी है। निदेशालय से
शिक्षकों की तैनाती की मांग की जाती है। नियुक्ति हो या फिर ग्रामीण क्षेत्र से
आएंगे, यह नीतिगत मामला है। हालांकि हमारी कोशिश है कि
सभी स्कूलों में पढ़ाई प्रभावित न हो पाए। इसके लिए शिक्षकों को अटैच करके इंतजाम
किए गए हैं।
- देवेश राय, खंड शिक्षाधिकारी, बरेली,
उप्र